hindi poem नई सोच जब ढक लिया अंधकार ने नभ को समा गए थे मेघ नभ में आभास हुआ था अमावस्या का लगा था न होगा अंत तम का ऐसे में उत्पन्न हुआ था उत्साह का एक नया सवेरा नई किरण नए जोश से हम निर्माण करने चलें स्वर्णिम भारत का प्रकृति इतनी धन्य हुई हम पर मस्तक पर हिमालय सजाया सागर से चरण धुलवाए और हृदय से गंगा बहाई शहीदों की चिताओं से इसकी नींव बनाई थी बापू के अरमानों पर खड़ा किया था भारत परंतु इस । व्यर्थ । । स्वार्थ। से ढ़हने. लगा है आज यह भारत । शहीदों की अस्थियां इतनी कमजोर तो नहीं थी बापू के अरमान इतने कमजोर तो नहीं थे ? तो क्या कारण हो सकता है इसका ? कहीं निर्माण में मिलावट तो शामिल नहीं? न ही भारत की नींव कमजोर थी और ना ही इसके स्तंभ शायद भारत निर्माण के अभियंता ही हैं उद्दंड आओ मिलकर दंडित करें ऐसे उद्दंड अभियंता को जिन्होंने नींव को खोखला किया मिलकर करें उनका अंत आज हम मिलकर संकल्प लें मजबूत भारत हम बनाएंगे
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